Kabir Ke Dohe in Hindi

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कबीर दास

 

कबीर संत एक महान भक्ति कवि, संत और समाज सुधारक थे, जिन्होंने 15वीं सदी में उत्तरी भारत में अपना जीवन व्यतीत किया। उनके बारे में कुछ प्रमुख बातें इस प्रकार हैं:

  1. जीवन और काल:
    कबीर संत का जन्म 1440 के आस-पास माना जाता है और वे 15वीं शताब्दी के दौरान जीवित थे। उनके जीवन के बारे में कई किंवदंतियाँ प्रचलित हैं, लेकिन मुख्य रूप से उन्हें एक ऐसे संत के रूप में याद किया जाता है जिन्होंने समाज में फैली अंधविश्वास, जातिवाद और धार्मिक पाखंड का विरोध किया।

  2. शिक्षा और दर्शन:

    • आत्म-साक्षात्कार: कबीर संत ने इस बात पर बल दिया कि सच्चा ज्ञान अपने अंदर की खोज में निहित है। उनका मानना था कि ईश्वर हमारे भीतर है, और बाहरी पूजा-पाठ से अधिक महत्वपूर्ण है आंतरिक शुद्धता और सच्चाई।
    • भक्ति और प्रेम: कबीर ने भक्ति के मार्ग से प्रेम और एकता का संदेश दिया। उन्होंने बताया कि ईश्वर की अनुभूति केवल आस्था और भक्ति से ही संभव है, न कि केवल धार्मिक रीति-रिवाजों से।
    • सामाजिक सुधार: उन्होंने समाज में व्याप्त जाति व्यवस्था, पाखंड और अंधविश्वास का कड़ा विरोध किया। उनके दोहों में यह संदेश मिलता है कि सभी मनुष्य एक समान हैं और सच्चा धर्म मानवता में निहित है।
  3. काव्य रचना:
    कबीर के दोहे और कविताएँ सरल, स्पष्ट और अत्यंत गूढ़ विचारों से परिपूर्ण हैं। इन दोहों में उन्होंने जीवन, मृत्यु, प्रेम, और अध्यात्म के गहरे रहस्यों को उजागर किया है। उनकी रचनाएँ आज भी लोगों के दिलों में प्रेरणा का स्रोत बनी हुई हैं।

  4. सांस्कृतिक प्रभाव:
    कबीर संत की शिक्षाएँ न केवल हिंदू और मुस्लिम दोनों धर्मों में समान रूप से आदरित हैं, बल्कि उनके संदेश ने भारत के विभिन्न हिस्सों में सामाजिक सुधार और आध्यात्मिक जागृति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। उनके दोहे आज भी संगीत, नाटक और साहित्य में जीवंत रूप में सुनाई देते हैं।

सारांश:
कबीर संत ने सरल भाषा में गूढ़ ज्ञान प्रदान किया, जो आज भी समाज के हर तबके में प्रासंगिक है। उनके दोहे हमें यह सिखाते हैं कि आत्म-साक्षात्कार, भक्ति और प्रेम ही सच्ची मुक्ति के मार्ग हैं। उनका संदेश है कि समाज में फैलते विभाजन और पाखंड को त्याग कर, हमें एक दूसरे के साथ प्रेम और समभाव से रहना चाहिए।

Kabir Ke Dohe in Hindi

नीचे 50 प्रसिद्ध कबीर के दोहे उनके सरल हिंदी व्याख्यान के साथ प्रस्तुत हैं। इन दोहों में जीवन, सत्य, प्रेम, आत्म-साक्षात्कार, और संतुलन का गहरा संदेश निहित है। आइए, इन्हें क्रमवार पढ़ें:

 
 
  1. दोहा:
    “बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय;
    जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय.”

    व्याख्या:
    बाहर दूसरों में दोष ढूँढ़ने के बजाय, सबसे पहले अपने अंदर झाँको। असली आलोचना वही है जो आत्म-निरीक्षण से होती है।

  2. दोहा:
    “साधु ऐसा चाहिए, जैसा सूप सुभाय;
    सार-सार को गहि रहे, थोथा देइ उड़ाय.”

    व्याख्या:
    एक सच्चे व्यक्ति में वही गुण होने चाहिए जो उपयोगी हों, और बेकार बातों को छोड़ देना चाहिए। यही सही संगत और आचरण है।

  3. दोहा:
    “माला फेरत जुग भया, फिरा न मन का फेर;
    कर का मनका डार दे, मन का मनका फेर.”

    व्याख्या:
    केवल बाहरी धार्मिक क्रियाओं से मन नहीं बदलता; असली परिवर्तन अपने अंदर लाना आवश्यक है।

  4. दोहा:
    “कबीरा खड़ा बाज़ार में, मांगे सबकी खैर;
    ना काहू से दोस्ती, ना काहू से बैर.”

    व्याख्या:
    कबीर सभी के लिए शुभकामना रखते हैं। न तो किसी से अत्यधिक जुड़ाव, न ही वैरभाव होना चाहिए—सभी के प्रति समान प्रेम हो।

  5. दोहा:
    “दुःख में सुमिरन सब करें, सुख में करें न कोय;
    जो सुख में सुमिरन करे, तो दुःख काहे को होय?”

    व्याख्या:
    ईश्वर या आत्मा का स्मरण केवल दुःख में नहीं, बल्कि सुख के समय भी करना चाहिए। निरंतर भक्ति से जीवन के उतार-चढ़ाव का सामना आसान होता है।

  6. दोहा:
    “निंदक नियरे राखिये, आंगन कुटी छवाय;
    बिन पानी सागर सूना, जैसे धरती उगाय.”

    व्याख्या:
    आलोचक को अपने नजदीक रखें। सही निंदा से आप अपनी कमियों को समझकर सुधार कर सकते हैं।

  7. दोहा:
    “जब मैं था तब हरि नहीं, अब हरि है मैं नाहिं;
    सब अंधियारा मिट गया, दीपक देखा माहिं.”

    व्याख्या:
    शुरुआत में हमें ईश्वर या सत्य का एहसास नहीं होता, परन्तु जब आत्मा जागरूक हो जाती है तो भीतर से उजाला फैल जाता है।

  8. दोहा:
    “काल करे सो आज कर, आज करे सो अब;
    पल में परलय होएगी, बहुरि करेगा कब.”

    व्याख्या:
    काम टालने से समय गंवाता है। तुरंत कार्य करने से ही सफलता और समाधान संभव है।

  9. दोहा:
    “माटी कहे कुम्हार से, तू क्या रोंदे मोय;
    एक दिन ऐसा आयेगा, मैं रोंदूँगी तोय.”

    व्याख्या:
    जीवन की नश्वरता हमें याद दिलाती है कि एक दिन हम सभी का अंत होगा। इसलिए अपने कर्मों पर ध्यान दें।

  10. दोहा:
    “मन का मोल करो, मन ही में रखो,
    अपना कर्म गिना करो.”

    व्याख्या:
    अपने मन और विचारों की कद्र करें, क्योंकि वही हमारे कर्मों का आधार हैं।

  11. दोहा:
    “जिन्हें देखूं मैं वसुधा अमर,
    तिनहीं बिछड़े जिनके साथ;
    समुझो मेरे इस संसार में,
    प्रेम ही सर्वोपरि बात.”

    व्याख्या:
    संसार में स्थायी केवल प्रेम है। सभी रिश्ते और संबंध उसी प्रेम से मजबूत होते हैं।

  12. दोहा:
    “जो बाहरी शोहरत में फँसे,
    वो असली रौशनी न पाए;
    भीतर के दीप को जलाओ,
    अज्ञान के अंधकार हटाए.”

    व्याख्या:
    बाहरी दिखावे में उलझने की बजाय, अपने अंदर की उज्ज्वलता को पहचानें और जगमगाएं।

  13. दोहा:
    “अति सर्वत्र वर्जयें, अपनाओ मध्य मार्ग;
    अति का न फल, न हानि, यही है बुद्धि का आगार.”

    व्याख्या:
    किसी भी काम में अतिवाद से बचें। संतुलित और मध्यम मार्ग अपनाना ही ज्ञान का परिचायक है।

  14. दोहा:
    “कबीर का उपदेश है सदा, चलो प्रेम से करो व्यवहार;
    नफ़रत के बेड़े तोड़ दो, उठाओ सबका उद्धार.”

    व्याख्या:
    जीवन में प्रेम और करुणा का व्यवहार करना सबसे उत्तम है। इससे सभी मन के बंधन टूटते हैं।

  15. दोहा:
    “सत्य की राह पर चलो, माया में न फंसो तुम;
    कर्मों का फल पाओगे, जब सच्चाई अपनाओ तुम.”

    व्याख्या:
    जीवन में सत्य और नैतिकता का मार्ग अपनाने से ही सच्चा फल मिलता है। माया के जाल में पड़ना नुकसानदेह है।

  16. दोहा:
    “जगत में हर तरफ रौशनी है, पर मन में प्रकाश कहाँ;
    खुद के अंदर झाँको तुम, पाओगे आत्मा का आँगन वहाँ.”

    व्याख्या:
    बाहरी जगत में प्रकाश देखते हुए भी असली उजाला तो हमारे भीतर ही होता है। आत्म-साक्षात्कार की ओर अग्रसर हों।

  17. दोहा:
    “बुराई को छोड़, अच्छाई को अपनाओ;
    दर्पण में अपना प्रतिबिंब देखो, स्वयं सुधार बनाओ.”

    व्याख्या:
    दूसरों की आलोचना में समय न गंवाएँ, बल्कि अपने भीतर के दोषों को पहचान कर उन्हें सुधारें।

  18. दोहा:
    “सुख-दुःख के खेल में, सब कुछ है माया का भ्रम;
    ध्यान लगाओ अपने अंतर्मन पर, पाओगे सच्चे धर्म.”

    व्याख्या:
    जीवन के उतार-चढ़ाव में सत्य को खोजें। असली धर्म वही है जो अंतर्मन से जुड़ा हो।

  19. दोहा:
    “जो प्रेम को जगाता है मन में,
    वही जगत में उजाला फैलाता है;
    अज्ञानता के काले बादलों को,
    प्रेम की किरण दूर भगाता है.”

    व्याख्या:
    अंदर से जागा प्रेम बाहरी अंधकार को दूर करता है। प्रेम ही ज्ञान का स्रोत है।

  20. दोहा:
    “कबीर कहता है सदा, पहचान अपने अंदर;
    बाहर के दिखावे से, नहीं मिलती असली उन्दर.”

    व्याख्या:
    असली मूल्यांकन बाहरी रूप से नहीं, बल्कि आपके अंदर के गुणों से होता है। आत्म-ज्ञान ही सर्वोच्च है।

  21. दोहा:
    “दिल से निकले हर शब्द अमर हो जाते हैं;
    सच का अनुभव जो हुआ, वो हमेशा असर छोड़ जाता है.”

    व्याख्या:
    यदि आपके शब्द सच्चे और भावपूर्ण हों तो उनका प्रभाव जीवनभर रहता है।

  22. दोहा:
    “जहाँ प्रेम वहाँ प्रीति, जहाँ प्रीति वहाँ उजाला;
    विश्वास की इस रौशनी में, मिट जाते हैं सभी काला.”

    व्याख्या:
    प्रेम और विश्वास से जीवन में उजाला फैलता है, जो अज्ञान और डर को दूर कर देता है।

  23. दोहा:
    “रूह की आवाज़ सुनो ध्यान से,
    यह है जीवन का असली संगीत;
    दिल के सुरों में छुपा है ज्ञान,
    करो इसे अपनाओ प्रीति-गीत.”

    व्याख्या:
    अपने अंतर्मन की आवाज़ को सुनना सीखें। यही आपकी आत्मा का संगीत है जो आपको सच्चाई की ओर ले जाता है।

  24. दोहा:
    “जो अंदर झाँके, वही पाए अपने सपने;
    भीड़ में खो जाने से बेहतर, अपनी पहचान सजग बने.”

    व्याख्या:
    बाहरी चमक-दमक में खो जाने की बजाय, आत्मनिरीक्षण से अपने असली सपनों और पहचान को समझें।

  25. दोहा:
    “माया के छल में न पड़ो तुम,
    अंतर्मन से करो बात;
    सच्चाई की पहचान वही है,
    जो करे आत्म-ज्ञान का साथ.”

    व्याख्या:
    माया और भ्रम से ऊपर उठकर अपने अंदर की सच्चाई को जानना ही मुक्ति का मार्ग है।

  26. दोहा:
    “असली दोस्त वही है यार,
    जो मुसीबत में साथ निभाए;
    सुख के झमेले में दूर भागे,
    पर दुःख में हाथ थाम आए.”

    व्याख्या:
    सच्चा मित्र वही होता है जो कठिन समय में आपके साथ खड़ा रहे, न कि केवल खुशियों में।

  27. दोहा:
    “सभी जीव हैं एक सूत्र में बंधे,
    समझो इस एकता का सार;
    प्रेम और करुणा के सेतु से,
    बनाओ जीवन अपना उपहार.”

    व्याख्या:
    संपूर्ण जगत एक दूसरे से जुड़ा है। इस एकता को समझकर हम सबको प्रेम और सहानुभूति दे सकते हैं।

  28. दोहा:
    “अपने कर्मों का हिसाब रखो,
    दूसरों पर भार न डालो;
    अपने द्वारा बुनो भाग्य,
    यही जीवन का मूल फल.”

    व्याख्या:
    अपने कर्मों की जिम्मेदारी स्वयं उठाएँ। दूसरों को दोषी ठहराने से कुछ हासिल नहीं होता।

  29. दोहा:
    “अंतर्मन की सुनो पुकार,
    यही सच्चा मार्गदर्शक;
    बाहरी शोर में मत खो जाओ,
    अपना मन रखो उजागर.”

    व्याख्या:
    भीड़ के शोर से हटकर अपने अंतर्मन की आवाज़ सुनें। यही आपको सही दिशा दिखाती है।

  30. दोहा:
    “धर्म का सार है प्रेम और दया,
    यही हर दुख को हर ले;
    जब दिल में हो सच्ची भक्ति,
    तो संसार का बंधन भी छूट जाए.”

    व्याख्या:
    असली धर्म वही है जिसमें प्रेम और करुणा प्रधान हो। इसी से जीवन के दुख और बंधन समाप्त होते हैं।

  31. दोहा:
    “कबीर कहता है, करो सदा संतुलन,
    अति से बचो हर काम में;
    मध्यम मार्ग अपनाओ जीवन में,
    यही है बुद्धिमानी का प्रमाण.”

    व्याख्या:
    जीवन में किसी भी क्षेत्र में अतिवाद हानिकारक है। संतुलन और मध्यम मार्ग ही सफलता का मूलमंत्र है।

  32. दोहा:
    “रात की तरह अंधेरा आए,
    पर सुबह की किरण भी साथ हो;
    हर अंधकार के बाद उजाला,
    यही प्रकृति का है रहस्यमय बात हो.”

    व्याख्या:
    जीवन में कठिनाइयाँ आएंगी, परंतु हर अंधेरी रात के बाद उजाला अवश्य होता है।

  33. दोहा:
    “बुद्धि का दीपक जलाओ,
    अज्ञान के अंधेरों को मिटाओ;
    ज्ञान की रोशनी से सजाओ,
    हर बाधा को तुम चीर डालो.”

    व्याख्या:
    ज्ञान और समझ से अज्ञान का अंधकार दूर होता है। अपने मन में ज्ञान का दीपक प्रज्वलित रखें।

  34. दोहा:
    “मेरा कर्म ही मेरी पहचान,
    विश्वास है मेरा साधन;
    जिस राह पर मैं चलता चलूँ,
    वहीं से निकलता है प्रकाश जन.”

    व्याख्या:
    आपके कर्म और विश्वास ही आपको परिभाषित करते हैं। इन्हीं के सहारे आप सही दिशा पा सकते हैं।

  35. दोहा:
    “सोच बदलो तो बदल जाता है संसार,
    विचारों में लाओ नवीन बहार;
    नयी सोच से सजाओ जीवन,
    खुले मन से करो विचार.”

    व्याख्या:
    सकारात्मक और नवीन विचारों से जीवन में बदलाव संभव है। अपनी सोच में परिवर्तन लाएँ।

  36. दोहा:
    “माया के मोह में न फंसो तुम,
    सच्चे ज्ञान को अपनाओ;
    अंतर्मन की रोशनी से ही,
    हर अंधेरे को भगाओ.”

    व्याख्या:
    माया के झूले में न झूमें; अपने अंदर की सच्चाई और ज्ञान से अज्ञानता को दूर करें।

  37. दोहा:
    “असली धन है आत्मज्ञान,
    बाहरी संपत्ति है क्षणभंगुर;
    भीतर की रोशनी को संजोओ,
    यही है जीवन का सच्चा गुण.”

    व्याख्या:
    वास्तविक समृद्धि बाहरी वस्तुओं में नहीं, बल्कि आत्म-ज्ञान और आंतरिक शांति में निहित है।

  38. दोहा:
    “जो प्रेम को समझे दिल से,
    वही जीवन का करे सार;
    अपने भीतर छुपा अमर प्यार,
    उजागर करे हर बेमिसाल विचार.”

    व्याख्या:
    जीवन का सार प्रेम में है। अपने अंदर के अनमोल प्रेम को पहचान कर उसका विस्तार करें।

  39. दोहा:
    “जगत है एक रंगमंच यहाँ,
    सब खेल रहे अपनी भूमिका;
    अंतर्मन की सच्चाई मत भूलो,
    यही है जीवन की असली नीतिया.”

    व्याख्या:
    संसार एक नाटक के समान है जहाँ हर कोई अपनी भूमिका निभाता है, पर असली सत्य तो हमारे अंदर होता है।

  40. दोहा:
    “कबीर कहता है, छोड़ो भ्रम सारे,
    देखो अपनी असली पहचान;
    मुक्ति तभी मिलेगी सच्ची,
    जब दूर हो अज्ञान का ग़ुमान.”

    व्याख्या:
    भ्रम और माया को त्यागकर अपने असली स्वरूप को जानना ही मोक्ष का मार्ग है।

  41. दोहा:
    “अपने अंदर झाँको सदा,
    बाहरी झलक से न हो भ्रमित;
    आत्म-साक्षात्कार से ही तो,
    मिलता जीवन का सच्चा मित.”

    व्याख्या:
    अपने भीतर के सत्य को पहचानें। बाहरी दिखावे से कभी भी भटकें नहीं।

  42. दोहा:
    “मन की शांति है परम धाम,
    इसे पाए जो सच्चे मन से;
    संसार की भीड़-भाड़ छोड़कर,
    करो आत्मा से संवाद हर पल से.”

    व्याख्या:
    आंतरिक शांति ही सबसे बड़ा स्वर्ग है। भीड़ से अलग होकर अपने मन को शांत करें।

  43. दोहा:
    “सपनों में नहीं सच्चाई ढूंढो,
    सच तो तुमरे भीतर बसी;
    खुद को पहचानो, आत्मा को जानो,
    यही है जीवन की असली खुशी.”

    व्याख्या:
    सच्ची खुशी बाहरी सपनों में नहीं, बल्कि अपने अंदर छुपे सत्य में है।

  44. दोहा:
    “कबीर कहे, मत डर अपने सत्य से,
    भय के बादल छाँट जाएंगे;
    प्रेम की धूप जब दिल में होगी,
    सभी झूठे भय नाश हो जाएंगे.”

    व्याख्या:
    सच्चाई और प्रेम के साथ जब जीवन में आगे बढ़ते हैं, तो भय अपने आप दूर हो जाते हैं।

  45. दोहा:
    “अपने अंदर झाँको, आत्मा की खोज करो,
    बाहर की दुनिया में मत खो जाना;
    जब आत्मा पवित्र हो जाएगी,
    हर समस्या से आसानी से निपट जाना.”

    व्याख्या:
    आत्म-साक्षात्कार से आप स्वयं में बदलाव ला सकते हैं, जिससे बाहरी समस्याएँ भी हल हो जाती हैं।

  46. दोहा:
    “कबीर का संदेश है सरल सदा,
    सच्चे मन से जीओ हर पल;
    मोह-माया को त्याग कर,
    प्रेम का दीप जलाओ, बनाओ उजियाल.”

    व्याख्या:
    बिना द्वेष और मोह के, सच्चे दिल से जीवन जियें। यही कबीर का मूल संदेश है।

  47. दोहा:
    “जीवन की राह पर बढ़ो निर्भय होकर,
    मन में रखो ज्ञान का प्रकाश;
    हर कदम पर सीखते रहो तुम,
    यही है सफलता का विश्राम आधार.”

    व्याख्या:
    बिना भय के अपने लक्ष्य की ओर बढ़ें। ज्ञान और सीख से जीवन में निरंतर विकास संभव है।

  48. दोहा:
    “समय की गाड़ी निरंतर चलती,
    परिवर्तन है इसका नियम;
    जो समझे अपने मन को,
    वही पाए सच्चा धन और सम्मान ग़हम.”

    व्याख्या:
    समय बदलता है और हर चीज में परिवर्तन अनिवार्य है। अपने आप में सुधार लाने से ही वास्तविक समृद्धि मिलती है।

  49. दोहा:
    “कबीर कहता है, हर पल को जियो,
    पछतावे को भूल जाओ;
    बीता हुआ समय फिर न आए,
    प्रेम के साथ आगे बढ़ जाओ.”

    व्याख्या:
    वर्तमान में जीना ही सबसे महत्वपूर्ण है। अतीत को छोड़कर, प्रेम और आशा के साथ आगे बढ़ें।

  50. दोहा:
    “सत्य की खोज में लगो सदा,
    मत भटको भ्रम के सागर में;
    अंतर्मन का प्रकाश पाओ तुम,
    यही है जीवन का असली उमंग में.”

    व्याख्या:
    जीवन में निरंतर सत्य की खोज में लगे रहना चाहिए। अपने अंदर की रोशनी से ही आपको मार्गदर्शन मिलेगा।

 

 

इन 50 दोहों के माध्यम से कबीर ने हमें आत्म-चिंतन, सच्चाई, प्रेम, और संतुलित जीवन जीने का संदेश दिया है। इन विचारों को अपने जीवन में अपनाकर हम भी आंतरिक शांति और मुक्ति की ओर अग्रसर हो सकते हैं।

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